यहां खाई जाती है लाल चिंटी
इस चटनी को खाते तो है और साथ में इन्हे बाजारों में बेचा भी जाता हैं। आदिवासियों का यह कहना है कि लाल चींटी में प्रोटीन के रूप में अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसे ठंड के मौसम में खाने से ठंड में बहुत फायदा मिलता हैं।
अगर रोजाना सुबह उठ कर लाल चींटी की चटनी खाई जाए तो दिनभर भूख नहीं लगती हैं।वहीं आदिवासी समाज के लोगो का कहना है कि " हम ठंड के मौसम का बेसब्री से इंतजार करते हैं कि कब ठंड की शुरुवात हो और लाल चींटी पेड़ो पर अपना घर बनाए और हम उसकी चटनी बनाकर खाएं।
लाल चींटी पूरे आदिवासी समाज में बड़े स्वाद के साथ खाया जाता हैं।आम,अमरूद, महुआ आदि मीठे फल लगने वाले पेड़ो पर ये चींटी अपना घरोंदा बनाती हैं।चींटी में फार्मिक एसिड होने के कारण इससे बनने वाली चटनी चटपटी होती हैं।
कैसे बनती हैं चींटी की चटनी :-
सभीचींटियों को पेड़ो से निकाल के एक पात्र में रख दिया जाता है और चींटियों को साफ किया जाता है।साफ करने के बाद उन्हें पिसा जाता है।मिर्च,लहसुन व स्वाद के अनुसार नमक मिलाकर एक चटपटी चटपटी चटनी बनाई जाती हैं।
प्रोटीन का सस्ता स्रोत:-
यह प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत भी हैं। आदिवासियों का कहना है कि इससे अनेक बीमारियों में आराम मिलता हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जो अनेक प्रकार के रोगाणुओं से लडने में सहायक होती हैं। उनका यह भी कहना है कि डेंगू, मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारियां भी इससे हार मान लेती हैं।
कैसे बनता है इनका घर:-
यह चींटी अपने लार्वा से पत्तो को जोड़कर एक घरौंदा का निर्माण करती हैं।लार्वा में चिपचिपाहट की मात्रा अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है जिससे ये चींटियां पत्तो को जोड़ती हैं।
इन कार्यों में होता है इनका प्रयोग :-
ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, चीन जैसे बड़े शहरों में शोध कर यह पाया गया है कि इन चींटियों को फल उद्यानों में अधिक जैविक कीटनाशी के रूप में इस्तमाल किया जाता है फलो क बगीचों में इन चींटियों को छोड़ा जाता हैं। इन चींटियों के डर से अनेक नुकसान पहुंचने वाले कीत दूर रहते हैं।
नोट:-
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3 टिप्पणियाँ
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